चित्त होते
हारते चले जाते हैं-
एक-से-एक
पुरन्दर पहलवान,
अपने ही अखाड़े में
अपने नौसिखियों से,
अपने
दाँव-पेंच से
पछाड़े गए।
रचनाकाल: ०९-०२-१९९०
चित्त होते
हारते चले जाते हैं-
एक-से-एक
पुरन्दर पहलवान,
अपने ही अखाड़े में
अपने नौसिखियों से,
अपने
दाँव-पेंच से
पछाड़े गए।
रचनाकाल: ०९-०२-१९९०