भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चित्र-लेखन या वीणा बजाने आदि में व्‍यस्‍त / कालिदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: कालिदास  » संग्रह: मेघदूत
»  चित्र-लेखन या वीणा बजाने आदि में व्‍यस्‍त

सव्‍यापारामहनि न तथा पीडयेन्‍मद्वियोग:
     शङ्केरात्रौ गुरुतरशचं निर्विनोदां सखीं ते।
मत्‍संदेशै: सुखयितुमलं पश्‍य साध्‍वीं निशीथे
     तामुन्निद्रामवनिशयनां सौधवातायनस्‍थ:।।

चित्र-लेखन या वीणा बजाने आदि में व्‍यस्‍त
उसे दिन में तो मेरा वियोग वैसा न
सताएगा, पर मैं सोचता हूँ कि रात में मन-
बहलाव के साधन न रहने से वह तेरी सखी
भरी शोक में डूब जाएगी।
अतएव आधी रात के समय जब वह
भूमि पर सोने का व्रत लिये हुए उचटी नींद
से लेटी हो, तब मेरे सन्‍देश में उस पतिव्रता
को भरपूर सुख देने के लिए तुम महल की
गोख में बैठकर उसके दर्शन करना।