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चित्र / विजेन्द्र
Kavita Kosh से
चित्रों में बोल्ड स्ट्रोक्स अच्छे लगते हैं
उनके साथ चटक रंग
उनके सहज संयोजन से
रची गई
खुरदरी बुनावट में
मुझे सदा
आदमी की अंदरूनी आभा दिखी है
पूरा चित्र एक कहन है
कविता में जैसे लय
ध्वनी और छन्द
रंगो से बनी सुबोध रेखाएँ
आदमी का दम-खम बताती हैं
कई बार कहन को
अधूरा छोड़ता हूँ
कविता में भी उजास को सहेजते
जिससे दर्शन और पाठक
अपने को मुक्त पा सकें
जीवन से हारकर भी
उसी में रम कर
आदमी के विराट को
खोज पाऊँ।
2007