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चित्र / संध्या गुप्ता
Kavita Kosh से
मैं चित्र बनाती हूँ
जल की सतह पर
देखो -
कितने सुन्दर हैं!!
जितनी यह काली और चपटी नाक वाली
कुबड़ी लड़की
जितने कुम्हार के ये टूटे हुए बर्तन
जितनी समन्दर की दहकती हुई आग
भूकम्प के बीच डोलती धरती
और
उलटी हुई नाव
देखो...!