भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिनगारी / शार्दुला नोगजा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़ोर लगाए
बारी बारी
दुनिया सारी
बुझ ना पाये
ये चिंगारी

हवा इसे तू देते रहना
दिल में सपन समेटे रहना
हँसी होंठ पे जो रखता है
हर गम से वो लड़ सकता है
ऊँच नीच सबकी तैयारी
बुझ ना पाये ये चिंगारी

माना पैसा बहुत जरूरी
बन ना जाये ये मजबूरी
सबसे बढ़कर खुशी है मन की
गाते रहना धुन जीवन की
गीत सुने तेरा दुनिया सारी
बुझ ना पाये ये चिंगारी

दुनिया में इंसाफ ना हरदम
स्याही की चादर ओढ़े ग़म
फिर भी जो दिल जोड़े दिलों से
हँस के जो खेले ख़तरों से
सूरज भी है उसका पुजारी
बुझ ना पाये ये चिनगारी

ज़ोर लगाए
बारी बारी
दुनिया सारी
बुझ ना पाये
ये चिनगारी