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चिन्तक के लिये अद्भुत / गुलाब खंडेलवाल

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चिन्तक के लिए अद्भुत
और भावुक के लिए करुण,
अंत में यही दो अनुभूतियाँ टिक पायी हैं;
देव के इस काव्य में
बस यही दो भाव स्थायी हैं.
छोटे-से-छोटे परमाणु का घूर्णन हो
या बड़े-से बड़े तारे की परिक्रमा,
प्रकृति की प्रत्येक भंगिमा हमें विस्मय से अभिभूत कर देती है
और चलचित्रों-सी क्षण-क्षण बदलती
जीवन की वास्तविकता
हमारे मन को करुणा से भर देती है.
यों तो हमारी चेतना
सदा किसी-न-किसी भाव-तरंग में उफनती रहती है,
पर वह कितनी भी उमड़े और लहराये
इन्हीं दो किनारों के बीच बहती है.