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चिन्ता के अंगारे / विमल राजस्थानी
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उर-अम्बर में झिलमिल करते चिन्ता के अंगारे
भींगा-भींगा-सा लगता है चाँद शीत के मारे
झूम-झूमक जाते थे कल तक-
तो भावों के बादल
अन्तर के आँगन में बजती
ही रहती थी पायल
कुछ ऐसा ही भाग्य विरासत-
में सौंपा विधना ने
सदा सँजोये रखना चाहे
आँखों में गंगाजल
सदा सींचना चाहे दुख की बेल नयन-झारी से
रीत अधरों से राधा को कैसे श्याम पुकारे
खग-कुल-कलरव, नन्हीं-नन्हीं पैजनियों की रूनझुन
जीवन-वीणा से न झरेगा
क्या अब अलि का गुंजन
क्या न सुनाई देगी वंशी-
टेर कुंज-गलियों में
रास-हास से मुखर न होगा
क्या जीवन का मधुवन
मीरा मनी भावना थिरके सम्मुख बनवारी के
पवरस की प्यासी मधूलिका आनन-चन्द्र निहारे