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चिन्दियों में ख़ुशी-राजनीति / छवि निगम

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सजी सड़कें मैदान जागे
हुए चुनाव सब दौड़े भागे
नारों प्रचार का गूंजे शोर
चहल पहल दीखे चँहु ओर।

लो जी, गये नेता अभिनेता
राजनीति बीने, चल स्वेता
ये बैनर ददिया ओढेगी
रात में अब न वह ठिठुरेगी।

पर्चों की पुड़िया लो बनाना
चने वाले को बेच कमाना
लिफाफे और बना पाएंगे
शायद दाल आज खायेंगे।

रस्सियाँ राधा बटोर लाएगी
टूटा छप्पर बाँध पाएगी
लम्बी चादर माँ को देंगे
कुछ तन तो उसका ढक देंगे।

बबुआ की कुछ नावें होंगी
हाथ सेकतीं रातें होंगी
बबुनी माला तुम बेच आओ
फटे फ्राक की लाज बचाओ।

वहाँ देख वो छूटी चप्पल
छाला टीसेगा न हर पल
आहा, पा गया टूटी एनक
दादू की आँखों की रौनक।

हो महंगा या सस्ता होवे
मन्दिर मस्जिद हो न होवे
चुनिया मुनिया बस जी पावें
चुन्नू मुन्नू मुस्कुरा पावें।

राजनीति भी कहाँ बुरी है
देती कबाड़, रैलियाँ भली हैं
बाँचते मुद्दे नेता फिर आयें
चिंदी चिंदी खुशियाँ लायें।