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चिरजीवी मित्र, मेरे कहने से और अपनी / कालिदास

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तामायुष्‍मन्! मम च वचनादात्‍मनश्चोपकर्तुं
     ब्रूयादेवं तव सहचरो रामगिर्याश्रमस्‍थ:।
अव्‍यापन्‍न: कुशलमबले! पृच्‍छति त्‍वां वियुक्‍त:
     पूर्वाभाष्‍यं सुलभविपदां प्राणिनामेतदेव।।

चिरजीवी मित्र, मेरे कहने से और अपनी
परोपकार-भावना से तुम इस प्रकार उससे
कहना - हे सुकुमारी, रामगिरि के आश्रमों में
गया हुआ तुम्‍हारा वह साथी अभी जीवित
है। तुम्‍हारे वियोग की व्‍यथा में वह पूछ रहा
हैं कि तुम कुशल से तो हो। जहाँ प्रतिपल
विपत्ति प्राणियों के निकट है वहाँ सबसे
पहले पूछने की बात भी यही है।