भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिर-नवीन नमस्कार / रामइकबाल सिंह 'राकेश'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बार-बार नमस्कार,
आदिदेव महादेव, तुम वरिष्ठ, वेदपार।
नीलमौलि नमस्कार।

तुम अनन्त भुवन चक्र के विराट नाभिस्थान,
तड़ित-स्तनित मेघ संघ के समान भासमान,
विविधरूप, वर्णकार, तुम महान् मन्त्रकार।
नीलकंठ नमस्कार।

मस्तक पर सम्प्रदीप्त बालचन्द्र विद्यमान,
देवनदी गंगा की लहर-भँवर प्रवहमान,
हृदयभूमि के ऊपर व्यालमाल भ्राजमान।
असंख्येय लोचन तुम ज्योतिर्मय मोक्षद्वार।
शब्दब्रह्म नमस्कार।

व्याप्त गहन अर्णव में, तुम पर्वत में विशाल,
करण, क्रिया, कारण तुम कालकाल, महाकाल,
तुम कराल महाज्वाल अग्निज्वाल लाल-लाल।
भक्तिभाव से अर्पित तुममें मन दुर्निवार।
नीलरुद्र नमस्कार।