चींटियाँ / राग तेलंग
दुनिया की तमाम चीटियों के कान्धों पर
हमारी समूची धरती का भार है
जिसे खुशी-खुशी ढोते हुए
हमारे करीब से चुपचाप गुज़र रही है चीटियाँ
सृष्टि की नींद के समय में भी
जागती रहती है चीटियाँ
घूमती हुई पृथ्वी के साथ क़दम से क़दम मिलाते
चीटियों के हिस्से का अदृश्य पसीना
हमारी स्त्रियों की बनाई
मीठी चीज़ों के स्वाद में घुला रहता है
सब चीटियाँ
इतने करीने से चलती देखी गईं
लगा कि हमारे पुरखों ने
असाध्य वाद्यों को साधने की कला
इनसे ही सीखी होगी
हमे कभी ख़बर नहीं होती
जाने कब उठकर
अलस्सुबह ही निकल पड़ती है चीटियाँ
अपने घरों से
सलामत न लौट पाने की आशंका के बावजूद
करूणा की प्रतिमूर्तियाँ ये
अपने आंसुओं के निशान तक नहीं छोड़ती
क्षणांक्ष का भी समय नहीं उनके पास
स्वजनों के दु:ख मनाने का
अक्सर हमारी माँओं की तस्वीरों के पीछे से
सायास निकलनी देखी गई है चीटियाँ
क्या है कोई रिश्ता माँओं से उनका ?
चीटियों और मनुष्यों का
सदियों पुराना अबोला चला आ रहा है
आओ कुछ देर रूककर
ध्यान से देखें इनके बेआवाज़ सफ़र को
थोड़ा और झुककर कहें इनके कान में
`श्रमेव जयते ´ ।