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चींटी राखी लाई / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
बजी द्वार पर घंटी ट्रिन ट्रिन,
हाथी जी चकराए।
फंदक-फंदक कर गुस्से में वह,
दरवाजे तक आए।
देख गेट पर चींटी जी को,
क्रोध हुआ काफूर।
सूंड उठाकर पूछा मुझसे,
क्या कुछ हुआ कसूर?
चींटी बोली अरे! नहीं रे,
डर मत मेरे भाई।
रक्षाबंधन पर भैया मैं,
राखी लेकर आई।