भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चीख के पहले / अनिल अनलहातु
Kavita Kosh से
और इसके पहले कि
सबकुछ खत्म हो जाए
सदा के लिए,
और तुम्हारे भीतर के
अंधेरे में डूब जाए.
मैं तुम्हारे अंदर के
आक्रोश को सुरक्षित
रख लेना चाहता हूँ
शीशे के चमकते जार, मर्तबान में
या किसी संग्रहालय की
अंधेरी दराज़ में।
ताकि देख सकें
आनेवाली पीढ़ियाँ
कि गुस्सेवर आदमी की
आखिरी चीख
कितनी सतही, खोखली और
हास्यास्पद होती है।