भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चीख / मोहन पुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कालै मिल्यो हो
तू चौखूंटी माथै
चौखूंटी माथै
जोर-जोर सूं
बोकाड़ा फाड़तो
रोवतो थकां....
म्हूं कींकर
मैसूस रियो हूं
उण री चीख
अजै तांई म्हारा कानां में ?