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चीज़ें / कुमार सुरेश
Kavita Kosh से
अपनी दृष्टि से
ख़ुद के घर को देखने के
अपने ख़तरे थे
ख़तरों से नज़र बचा कर
हमने घर को
उनकी दृष्टि से देखा और
घर के हर कोने में एक
ज़रूरत को महसूसा
उनके दृष्टिकोण से
ज़रूरतें संतुष्ट करते-करते
हमने पाया, हम
अकेले और अकेले होते जा रहे हैं
अकेलापन मिटाने के लिये
हमने घर को चीज़ों और चीज़ों से भर लिया
हमारी ज़रूरतें, अकेलेपन और चीजों
के समानुपाती सम्बन्ध से
मजबूर होकर हमने
घर को अपनी दृष्टि से देखने की
कोशिश की, वहाँ
एक दूसरे की मौजूदगी से तटस्थ
चीज़ें और चीज़ें
मौजूद थीं ।