भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चीजों को मरते देखा है / राहुल कुमार 'देवव्रत'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आती-जाती सांसों से ही तो जीवन होता है

... झूठ

कि बंद हो जाने से
मार्ग मर जाते हैं
खयालों की पुरानी सूखी परतें
जब भींचती हैं गहरे
मद्धम पड़ता जाता है
मन का उजास

कभी गौर से देखो
एक हरे मैदान की घासों का जलना
और टूटना मिट्टी की परतों का
कि जैसे नीचे की मिट्टी
अब इन टूटती परतों का वजूद पहचानती नहीं
एक ही अवयव से बनी इन तहों के बीच
यूं बंटवारे के चिह्न का उगना...बेवजह
बुरा तो है

कि असंवाद एक धीमा जहर है
यहां धीरे-धीरे मरते जाते हैं संबंध
.........घुटकर
और बंद हो जाती हैं पड़तालें

क्या तुमने देखा है
कई तरह से चीजों का मरना ?

सईं सांझ तुम्हारा आना.....जाना
अब नहीं होता

कि चुभना संवेदना की निशानी है
और यह भी कि तुम जिंदा हो

क्या तुम्हें भी महसूस होता है इन दिनों
...चीजों का चुभना ?