सुबह-सुबह
चीड़ के पेड़
ताम्बई रंग के होते हैं ।
ऐसा ही देखा था उन्हें
कोई आधी सदी पहले
दो विश्वयुद्धों से पहले
अपनी नौजवान
आँखों से ।
1953
मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य
सुबह-सुबह
चीड़ के पेड़
ताम्बई रंग के होते हैं ।
ऐसा ही देखा था उन्हें
कोई आधी सदी पहले
दो विश्वयुद्धों से पहले
अपनी नौजवान
आँखों से ।
1953
मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य