चीते, चूहे और चील की दोस्ती / निदा नवाज़
चूहे कभी भी निकल सकते हैं
अपनी बिलों से
चीते कभी भी घुस सकते हैं
बस्तियों में
चील कभी भी मंडरा सकते हैं
शहर पर
और यह शहर
तुम्हारे भीतर का
एक विचार भी हो सकता है
तुम्हारी आँखों में पनपा
एक सपना भी हो सकता है
तुम्हारे मस्तिष्क में उपजा
एक सुंदर सा तर्क भी ही सकता है
और यह शहर
तुम्हारे दिल का वह
रोशन कोना भी हो सकता है
जहाँ जलते हैं विश्वास के दीप
चीते चील और चूहे की दोस्ती
बहुत पुरानी है
एक चीर-फाड़ करता है
दूसरा कुतरता है
भाईचारे का आंचल
और तीसरा नोचता है
मानवता का शरीर
राजकुमार का सपना
चीते के पंजे में कैद हुआ
चूहे ने उसके पंख कुतरने शुरू किये
चील ने उसको नोचना आरंभ किया
मैं राजकुमार के सपने को
इनसे छुड़ाऊंगा
मैं बेनिकाब करूंगा
चीते, चूहे और चील की यह दोस्ती.