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चीर-चीर कमठी को पिंजरा बनायो / पँवारी
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पँवारी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
चीर-चीर कमठी को पिंजरा बनायो
एना पिंजरा मऽ रव्हन नी पाई मऽराऽ गोविन्द रे
पिंजरा की मयना मऽरीऽ उड़ऽ चली।।
सोन्ना की चिड़िी मऽरीऽ उड़ऽ चली
बाबुल जी रोवय ओको छेला रे भीजय
माय की भीजय गुलसाड़ी रे
मऽराऽ बाबुलजी की बेटी बिहानी। सोन्ना की।।
काहे खऽ रोवय मऽराऽ गहरो सो बाबुल
काहे खऽ दी परदेश रे
मऽराऽ बाबुलजी की बेटी बिहानी। सोन्ना की।।