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चीर चुरानेवाला चीर बढ़ावे है / पुरुषोत्तम प्रतीक

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चीर चुराने वाला चीर बढ़ावे है
ऐसी लीलाओं से जी घबरावे है

जितनी बार बुहारूँ हूँ अपने घर को
उतनी ही साँसों में धूल समावे है

कैसी बेचैनी है देखो बिरवों में
आज हवा फिर किसकी चुगली खावे है

बादल भी अब पानी बा‘ंटे है ऐसे
इस घर सूखा, उस घर जल बरसावे है

बाँचे है ये भीतर तक आखर-आखर
आख़िर दिल को पढ़ना कौन सिखावे है