चीस भड़क ऊपर भीतर तै घाय्ल कर दिया / राजेश दलाल
चीस भड़क ऊपर भीतर तै घाय्ल कर दिया
गूंठे पै डाका गेरया कंगाल कर दिया
बणा गार का गुरु मनै तै, करी साधना भारी
भूख प्यास दिन रात चला चल जमकै कला भिखारी
चौगरदै रूक्का होग्या मैं तपग्या धनुष धारी
तेरे तै सो बै आच्छा था गार का द्रोणाचारी
महान सुणे थे देखो कोड बबाल कर दिया
मजे मन्द मियां नै मुर्गा हलाल कर दिया
हुई उजागर आज गुरू तेरी वाह-वाही थी झूठी
शिष्य आस्था ठोकर मारी पी कै राज की घूटी
गुरूपणे के नियम-कायदे टांग धरे सब खूंटी मुझे निर्धन के अरमाना की तीज दिवाळी लूटी
उठै-पड़ै सै झाल बदन मैं भूचाल कर दिया
धान-धान लिये झाड़, सुखी पराळ कर दिया
फर्ज गुरू का नम्बर वन सै तेल घाल दे बाती मैं
थू-थू होवैगी तेरी चोगरदै क्यूकर बणू हिमाती मैं
आदर मिलना मुश्किल सै तनै दलित-भील जाति मैं
अर्जुन भी तेरै मारै एक दिन खींच तीर छाती मैं
तू सौचै सै पांडवा का ऊंचा भाल कर दिया
ओ! धर्म गुरू तनै धर्म भ्रष्ट फिलहाल कर दिया
कोये तै बता दो के काढ्या मनै द्रोणा गुरू बणा कै
इब चल्या मैं तीर धनुष यू कट्या अंगूठा ठाकै
मेरी माता सब देखैगी वा तै मरज्यागी अरड़ा कै
और सवाया बणणा सै इब पैर तै तीर चला कै
मुसीबतां नै तगड़ा ‘राजेश दलाल’ कर दिया
ऊंचै और जाणे का पक्का ख्याल कर दिया