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चुंबन चाँदनी का / सुस्मिता बसु मजूमदार 'अदा'
Kavita Kosh से
आसमानी ऊँचाइयों पर
इस सूरज ने जाने कैसे
पश्चिम जाने से पहले
संतरे सा सिंदूरी रंग घोलकर
आज लगा दी है
इस ठंडे आसमान के सीने पर।
इश्क की आग या
जुदाई के गम में जला कर जा रहा है
धीरे-धीरे अंधेरा उतर रहा है।
आसमां के सीने पे
चाँदनी का लेप लगा दो
मरहम की तरह
एक बार प्यार से चूम लो
जिसे आग में जलने में खवाहिश हो
उसे न भाएगा
चुंबन चाँदनी का।