भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चुट्टी / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
गाछ पर देखियौ
दूभि पर देखियौ
फूल पर देखियौ
घर पर देखियौ
आँगनमे देखियौ
छत पर देखियौ
मैदानमे देखियौ
पहाड़ पर देखियौ
रेगिस्तानमे देखियौ
जेरक-जेर धारीमे चलैत चुट्टी।
चुट्टी
दिन-राति उघैत रहैत अछि
अन्नकण
मनोयोगसँ लागल रहैत अछि
काज करबामे
घर-गृहस्थी
सम्हारबामे।