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चुनलीं त फूल काँट के बटीर आ गइल / तैयब हुसैन ‘पीड़ित’
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चुनलीं त फूल काँट के बटीर आ गइल
जब-जब हँसे के चहलीं तबे लोर आ गइल
देखले रहीं अन्हार से पहिले के अँजोरा
बुझलीं कि रात बीत गइल भोर आ गइल
दोसरा के जरावेला जे धीरे बहल हवा
हमरा के बुतावेला, उहे जोर आ गइल
शीशा खराब बा कि ई नजरे के ह कसूर
आपन देखे के चहलीं, सूरत तोर आ गइल
मँगले रहीं त सामिले जिनगी के सब सवाद
अँजुरी में दुखे ढेर, खुशी थोर आ गइल