भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चुनलीं त फूल काँट के बटीर आ गइल / तैयब हुसैन ‘पीड़ित’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चुनलीं त फूल काँट के बटीर आ गइल
जब-जब हँसे के चहलीं तबे लोर आ गइल

देखले रहीं अन्हार से पहिले के अँजोरा
बुझलीं कि रात बीत गइल भोर आ गइल

दोसरा के जरावेला जे धीरे बहल हवा
हमरा के बुतावेला, उहे जोर आ गइल

शीशा खराब बा कि ई नजरे के ह कसूर
आपन देखे के चहलीं, सूरत तोर आ गइल

मँगले रहीं त सामिले जिनगी के सब सवाद
अँजुरी में दुखे ढेर, खुशी थोर आ गइल