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चुनाव गीत / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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पाँच बरस पर घूम रहे हैं
घर घर फिर एम्0 एल्0 ए0
मुझ गरीब के दरवाजे पर
भी लगते हैं फिर
रह जायेगा दरवाजा
आज बना जो सेवक
कल बनकर आयेगा राजा
कब गरीब की सुधि लेने की
फुरसत मिल पायेगी
मन की कली वोट पाकर बस
ज्योंही खिल जायेगी
नाक रगड़ कर रह जायेंगे
तब फिर सब मतदाता
मुश्किल से दर्शन देंगे
पल भर को भाग्य विधाता
जीने वालो! मिल न सकेगा
तुमको फिर सन्तावन
बहती गंगा में कर धो लो
कर लो घर भर पावन
धीरज धरकर रहो कि
पूरी होगी सब अभिलाषा
तब तक पण्डितजी से सीखो
स्तुति करने की भाषा
ठीक बजाकर औरत लेती
मिट्टी का भी बर्तन
मत दाताओं! तुमको भी
लाना है नव परिवर्तन
चौराहे पर खड़ा न रहकर
एक राह धरनी है
तुम सिद्धान्त सुनो मत
देखो किसकी क्या करनी है
खाल ओढ़कर घूम रहे हैं
बड़ो बड़ों के चेले
उन्हें खिला दो हॉजीपुर के
चम्पा चिनिया केले
फटी हुई अपनी चादर को
अपने सीने वालो!
प्यास बुझाने हेतु सहम कर
आँसू पीने वालो!
ठगने वालों की नजरों में
क्या काबा क्या काशी
सावधान हो कदम उठाना
भोले भारत वासी!
तेरे आँसू से धरती को
पाँच बरस है पटना
इस विहार की नरक-भूमि में
स्वर्ग एक पटना है
हिम्मत बाँधो ; पत्थर कर लो
अपना आज कलेजा
गंगाजी में डूब मरो तुम
पहले जा पहलेजा
मगर बिना समझे बूझे
मतदान नहीं करना है
वरना इसी नरक में रहकर
जीना औ’ मरना है-