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चुनिन्दा अश्आर- भाग तीन / मीर तक़ी 'मीर'



२१.
अपने तो होंठ भी न हिले उसके रू-ब-रू
रंजिश की वजह ‘मीर’ वो क्या बात हो गई?
२२.
‘मीर’ साहब भी उसके याँ थे पर
जैसे कोई ग़ुलाम होता है
२३.
हम सोते ही न रह जाएँ ऐ शोरे-क़यामत !
इस राह से निकले तो हमको भी जगा देना
२४.
मस्ती में लग़ज़िश<ref>कम्पन,डगमगाहट</ref> हो गई माज़ूर <ref>असमर्थ(इस सन्दर्भ में क्षमा करना)</ref> रक्खा चाहिए
ऐ अहले मस्जिद ! इस तरफ़ आया हूँ मैं भटका हुआ
२५.
आने में उसले हाल हुआ जाए है तग़ईर<ref>परिवर्तित</ref>
क्या हाल होगा पास से जब यार जाएगा ?
२६.
बेकसी<ref>लाचारी</ref> मुद्दत तलक बरसा की अपनी गोर<ref>क़ब्र</ref> पर
जो हमारी ख़ाक़ पर से हो के गुज़रा रो गया
२७.
हम फ़क़ीरों से बेअदाई क्या
आन बैठे जो तुमने प्यार किया
२९.
सख़्त क़ाफ़िर था जिसने पहले ‘मीर’
मज़हबे-इश्क़<ref>प्रेम-पंथ </ref> अख़्तियार<ref>अपनाया</ref> किया
३०.
आवारगाने-इश्क़<ref>प्रेम में उन्मत्त हो कर इधर -उधर हो कर फिरने वाला</ref> का पूछा जो मैं निशाँ
मुश्तेग़ुबार<ref>मुट्ठी भर रेत</ref> ले के सबा ने उड़ा दिया

शब्दार्थ
<references/>