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चुपके से चाँद निकलता है / हरिवंशराय बच्चन

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चुपके से चाँद निकलता है।

तरु-माला होती स्वच्छ प्रथम,
फिर आभा बढ़ती है थम-थम,
फिर सोने का चंदा नीचे से उठ ऊपर को चलता है।
चुपके से चाँद निकलता है।

सोना चाँदी हो जाता है,
जस्ता बनकर खो जाता है,
पल-पहले नभ के राजा का अब पता कहाँ पर चलता है।
चुपके से चंदा ढ़लता है।

अरुणाभा, किरणों की माला,
रवि-रथ बारह घोड़ोंवाला,
बादल-बिजली औ’ इन्द्रधनुष,
तारक-दल, सुन्दर शशिबाला,
कुछ काल सभी से मन बहला, आकाश सभी को छलता है।
वश नहीं किसी का चलता है।