चुपके से सपनों में आना / गिरधारी सिंह गहलोत
चुपके से सपनों में आना
प्यार नहीं तो आखिर था क्या?
कभी रूठना कभी मनाना
प्यार नहीं तो आखिर था क्या?
सुधियों में अब तक जिन्दा है
आ चुपके से ढांपी आँखें
कसी जोर से गलबहियाँ फिर
मन का पंछी खोले पांखे
और अचानक लेट गोद में
बिना रुके क्या क्या कहते तुम
बार बार कंगन खनकाना
प्यार नहीं तो आखिर था क्या?
कभी रूठना कभी मनाना......
कभी कभी मन होता जब तुम
लहराकर आँचल आ जाते
और छुपाकर दुनियां से फिर
अधर अधर से कुछ कह जाते
अलकों को छूकर पलकों से
बंद नयन कर क्या कहते तुम
बिन नर्तन पाजेब बजाना
प्यार नहीं तो आखिर था क्या?
कभी रूठना कभी मनाना.....
याद मुझे अब भी है जानम
प्रीत पलों में सुंदर इक पल
चून गूंधते हुए अचानक
फेंक दिया था गालों पर जल
कभी शरारत करके मुझको
चिमटा बेलन ले धमकाना
फिर अपने ही हाथ खिलाना
प्यार नहीं तो आखिर था क्या?
चुपके से सपनों में आना
प्यार नहीं तो आखिर था क्या?
कभी रूठना कभी मनाना
प्यार नहीं तो आखिर था क्या?