भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चुपचाप / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
दिनसँ राति
रातिसँ दिन
शीतसँ ग्रीष्म
ग्रीष्मसँ बरखा
बिहनिसँ पानि
पानिसँ भाप
नादसँ शब्द
शब्दसँ कविता
नेनपनसँ जुआनी
जुआनीसँ बुढ़ारी
यैह क्रम
दोहरायल जाय छै
बेर-बेर
बिना कोनो
नारेबाजीक
चुपचाप।