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चुप्पियाँ जिस दिन ख़बर हो जाएँगी / द्विजेन्द्र 'द्विज'
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चुप्पियाँ जिस दिन ख़बर हो जाएँगी
हस्तियाँ ये दर—ब—दर हो जाएँगी
आज हैं अमृत मगर कल देखना
ये दवाएँ ही ज़हर हो जाएँगी
सीख लेंगी जब नये अंदाज़ ये
बस्तियाँ सारी नगर हो जाएँगी
सभ्य—जन हैं, आस्थाएँ , क्या ख़बर
अब इधर हैं , कब उधर हो जाएँगी
साहिलों से अब हटा लो कश्तियाँ
वर्ना तूफ़ाँ की नज़र हो जाएँगी
है निज़ाम—ए—अम्न पर तुम देखना
अम्न की बातें ग़दर हो जाएँगी
गर इरादों में नही पुख़्ता यक़ीं
सब दुआएँ बेअसर हो जाएँगी
मंज़िलों की फ़िक्र है गर आपको
मंज़िलें ख़ुद हमसफ़र हो जाएँगी
ज़िंदगी मुश्किल सफ़र है धूप का
हिम्मतें आख़िर शजर हो जाएँगी