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चुप्पियां जब बोलती हैं / योगेंद्र कृष्णा
Kavita Kosh से
मैंने चुप्पियों और शब्दों के
कई कई रंग देखे हैं
कई कई परतों में खुलती
चुप्पियों और शब्दों के बीच
गुमनाम और खुले जंग देखे हैं
और देखी है मैंने चुप्पियों की जय
और शब्दों की पराजय भी
मैंने देखा है कोई बोलकर भी चुप रहा
और कोई चुप रहकर भी बोल गया
कोई बोलकर किसी के गुनाह पर
परदा डाल गया
और कोई चुप रह कर भी
बड़े बड़ों की खोल गया