भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चुप्पी / राजेश शर्मा 'बेक़दरा'
Kavita Kosh से
चाहने औऱ ना चाहने के बीच
उसने ओढ़ रखी थी, मौन की चादर
ये कोई कूटनीति का पहला अध्याय नही था
असल मे इस चुप्पी में बंद थी,उसकी कुछ मजबूरियां
जिसमे शामिल हैं
चूड़ियों के खनकने की मजबूरियां
कभी बच्चों की किलकारियों की
मजबूरियां
कभी कुछ अवांछित अनुमान की
मजबूरियां
बावजूद इसके उसकी चुप्पी में बंद रहती हैं
उसकी कुछ इच्छाएं ओर वो देखती रहती हैं
अपना सिसकता प्रेम!