भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चुप्पी / ‘निशात’ अंसारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चुप्पी भी कुछ कहती है
यदि समझ हो, चुप्पी की ताक़त पहचानो
चुप्पी को शब्द या क़लम की नहीं ज़रूरत
शब्दहीन होती चुप्पी जैसे शब्दहीन
चुप्पी को पढ़ोगे एक पुस्तक की तरह
खु़दा क़सम होगा परिचय
एक नए संसार का
बातें करते करते थक जाओगे
कुद न मिलेगा
चुप्पी को यदि पढ़ सकोगे
मिलेगा वह
जिसका तुमको न हो ज्ञान
यदि दिल में हो इच्छा कुछ बोलने की
कुछ न बोलो
चेहरे स्वयं ही बातें करते हैं
आँखें केवल दृष्टि की अभिव्यक्ति नहीं
संभाषण है उनके पास
कोई तसवीर या चित्र देखना चाहिए
बे-जुबान हो के भी बोलते बहुत कुछ
मनुष्य थक कर चूर हुआ है
वह कहकर जो नहीं बोलना चाहिए था
‘‘मुक्ति ख़ामोशी में है’’ पैग़म्बर ने कहा
जो कहीं न समा सके, है चुप्पी में समाता
चुप्पी अभिव्यक्ति का सशक्त साधन है
छंद अपना इसका, रीत अपनी