भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चुप्प / रेखा चमोली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने कहा, चूहा
वह शरारत से मुसकायी
पास बैठी ,
बोली
कुतरना ,बिल्ली, खेत, चारपाई
सरपट -कटकट
जाने क्या-क्या ?

मैनें कहा , तितली
वो झुक आयी मेरी गोद में
ऑखें चमकाती सुनाने लगी किस्से
फूलों ,हवाओं ,बादलों ,पतंगों के

मैंने कहा, चुप्प
उसने फेर लिया मुॅह।