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चुप क्यों है तू प्राण कोकिले / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

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चुप क्यों है तू प्राण कोकिले
कुछ तो मधुमय बोल॥

है निस्पंद मौन तन वीणा
श्वास समीर बहे।
मूक रहेगी सदा सदा
कैसे तकदीर कहे।
जग के झंझावात
परिस्थितियों की पीर सहे।
चुपके चुपके किंतु अनवरत
दृग से नीर बहे।

ऐसे में पीयूष कलश बन
श्रवण सुधा रस घोल।
कोकिले कुछ तो मधुमय बोल॥

अपरिवर्तना नहीं समस्याएं
तो हैं मौसम सी।
और जिंदगी है अधरों पर
थिरकी एक नजम सी।
बने न पूरी किए बिना जो
ऐसी कठिन रसम सी।
मिट मिट कर भी रहो निभाते
खाई हुई कसम सी।

खारी है दृग -झील मछलियाँ
करती हैं किल्लोल।
कोकिला कुछ तो मधुमय बोल॥