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चुप नहीं रह सकता आदमी / संध्या गुप्ता
Kavita Kosh से
चुप नहीं रह सकता आदमी
जब तक हैं शब्द
आदमी बोलेंगे
और आदमी भले ही छोड़ दे लेकिन
शब्द आदमी का साथ कभी छोड़ेंगे नहीं
अब यह आदमी पर है कि वह
बोले ...चीख़े या फुसफुसाए
फुसफुसाना एक बड़ी तादाद के लोगों की
फ़ितरत है!
बहुत कम लोग बोलते हैं यहाँ और...
चीख़ता तो कोई नहीं के बराबर ...
शब्द ख़ुद नहीं चीख़ सकते
उन्हें आदमी की ज़रूरत होती है
और ये आदमी ही है जो बार-बार
शब्दों को मृत घोषित करने का
षड्यंत्र रचता रहता है !