चुप बे / हरजीत सिंह 'तुकतुक'
रात के बारह बजे थे।
हम गली के नुक्कड़ पर खड़े थे।
चारों तरफ सन्नाटा था।
हमारे हाथ में आटा था।
डर के मारे,
हमारी जान निकली जा रही थी।
गली में रहने वाले कुत्ते की,
स्पेसीफिकेशन याद आ रही थी।
गली में मिल जाये,
नुक्कड़ तक दौड़ाता था।
कभी कभी तो,
बोटी भी नोच खाता था।
हमनें गली में झांक कर,
गौर से गली का मुआयना किया।
फिर सावधानी पूर्वक,
गली में प्रवेश किया।
आधे रास्ते में पंहुच कर,
हमें वो महाकाल नज़र आया।
हमें देखते ही,
ज़ोर से गुर्राया।
हम जहां खड़े थे वहीं थम गये ।
हमारे पांचों तंत्र एक साथ जम गये।
हमारी हालत देख कर वो हौले से मुस्कराया।
फिर हमारे पास तक आया ।
बोला अबे यार क्या करता है।
आदमी होकर कुत्ते से डरता है।
जा निकल जा नहीं काटूंगा।
सच्ची बोलता हूं पैर भी नहीं चाटूंगा।
हमने कहा,
कुत्ता जी,
आप तो शक्ल से ही जैन्टलमैन नज़र आते हैं।
लोग बेकार में आपके बारे में उल्टी सीधी उड़ाते हैं।
और आपका नेचर तो इतना आला है।
वो बोला,
चुप बे !
इलेक्शन आने वाला है।