भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चुप भी / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
बहुत बार
कहीं नहीं होता
न विश्वास में
न आस में
उसके होंठों से
झरता हुआ
एक भी शब्द
बोलते हुए अक्सर
चुप भी होती है औरत