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चुप रहना, बहुत कुछ कहना / अरुण आदित्य
Kavita Kosh से
चुप हूँ इसका मतलब यह नहीं है
कि बोलने को कुछ है ही नहीं मेरे पास
या कि बोलने से लगता है डर
चुप हूँ कि किसके सामने गाऊँ या चिल्लाऊँ
किस तबेले में जाकर बीन बजाऊँ
जिन्हें नहीं सुनाई देती
पेड़ से पत्ते के टूटकर गिरने की आवाज़
जिनके कानों तक नहीं पहुंच पा रही
नदियों की डूबती लहरों से आती
बचाओ-बचाओ की कातर पुकार
जिन्हें नहीं चकित करती
अभी-अभी जन्मे गौरैया के बच्चे की चींची-चूँचूँ
भूख से बिलख रहे किसी बच्चे की आवाज़
जिनके हृदय को नहीं कर जाती तार-तार
उनके लिए क्या राग भैरव और क्या मेघ मल्हार
जहाँ सहमति में हो इतना शोर
कि असहमति में चिल्लाना
सबको मनोरंजक गाना लगे
वहाँ चुप रहना, बहुत कुछ कहना है ।