भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चुप रहो या बोलो / प्रयाग शुक्ल
Kavita Kosh से
चुप रहो या बोलो
या तो चुप रहो
या बोलो
या तो बोलो
या चुप रहो.
बोलो तो इस तरह
कि भीतर की चुप्पियों
तक ले जाये
बोलना.
रहो चुप तो इस तरह
कि भीतर की चुप्पियाँ
गहरी,
अथाह, बोलें