चुप रह रे बउआ / सिलसिला / रणजीत दुधु
चूप रहे बउआ, सुन लेतउ उगरवादी
तोर भलाई के नाम पर ई करऽ हउ बरबादी
जनता हित के नाम घोस के छीनऽ हई आजादी
मत पड़ एक्कर फेर में बऊआ, बिलट के तू मर जइमें
गाँव-देहात के अदमी त्रस्त हइ, त्रस्त हइ कुल आबादी
बाघ चीता भालू पेट भरेले केकरो मारे,
ई राछसबा तो बेमतलबे गाँव घर के उजाड़े,
एकरा तो सगरो खाली करना हे बरबादी।
चूप रह रे बउआ सुन लेतउ उगरवादी
जो जिनगी जान बचतउ तऽ चल जइहें परदेश,
अमर-चइन से रहिहें न´् होतउ तनिको कलेश
ई न´् हउ हल्का-फल्का रोग हो गेलउ मियादी
चूप रह रे बउआ सुन लेतउ उगरवादी
जानवर से भी नीचे अब होगेलइ, इंसान,
जे गरभे में मार रहल हे अप्पन अंश संतान,
मेहरारू के मार-मार करे के फेरू शादी,
चूप रह रे बउआ सुन लेतउ उगरवादी
चिरँय चिरगुनी भी अपन घर में सूते निहचीत
मगर अदमी अप्पन घर में रह रहलय भयभीत
हत्या अपहरण के बात सुन-सुनके अदमी हो गेल आदी
चूप रह रे बउआ सुन लेतउ उगरवादी
भा-भाय के आपस में रहलै नय परेम आउ मेल
जाति-धर्म अगड़ी पिछड़ी के हो रहलई खेल
आपस में लोगन के भिड़ा-भिड़ा मउज मारे खाकी-खादी
चूप रह रे बउआ सुन लेतउ उगरवादी