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चुप है हर वक़्त का रोने वाला / सुरेश चन्द्र शौक़
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चुप है हर वक़्त का रोने वाला
कुछ न कुछ आज है होने वाला
एक भी अश्क नहीं आँखों में
सख़्त—जां कितना है रोने वाला
आज काँटों का भी हक़दार नहीं
हार फूलों के पिरोने वाला
खो गया दर्द की तस्वीरों में
प्यार के रंग भिगोने वाला
फ़स्ल अश्कों की उग आई कैसे
क्या कहे क़हक़हे बोने वाला
बाँटता फिरता है औरों को हँसी
ख़ुद को अश्कों में डुबोने वाला
मुतमुइन अब हैं यही सोच के हम
हो रहेगा है जो होने वाला
‘शौक़’!तुम जिसके लिए मरते हो
वो तुम्हारा नहीं होने वाला
मुतमुइन=संतुष्ट