चुमाओन / शारदा झा
आञ्जुर भरि सिनेहक धान
खोंइछ मे बन्हने
काटि दैत अछि जिनगी ओ स्त्री
अही नेयार मे
जे हेतन्हि पलखति कहियो
त' घुरि क' तकताह अबस्से
सोचैत त' ओहो हेबे करताह
जे कनियाँ-पुतराक खेल जकाँ
हेरि आनल संगिनी
कतहु बाट मे पाछुए त' नहि रहि गेलीह?
मोन मे बसल कस्तूरीक गंध क्षीण त' नहिं भ' गेल?
लाल-पीयर नुआक खूट मे
लोढ़ल तीरा आ अड़हुल
गोसाउनि ल'ग राखि
देहरि पर भेल ठाढ़ि
करैत हेतीह प्रतीक्षा
सैंतइत-ओसारैत हेतीह घर अंगना
नीपल-ढोरल झकझक करैत ओसारा पर
देइत हेतीह अरिपन
पहिरने हेतीह वैह लहठी
जे परुका हुनके पसिन्न सँ किनायल छलन्हि
कलपैत मोन आ देह
हुनके स्पर्शक बरखा लेल झुझुआन भेल
मौलायल कुमुदिनी सन अनसोहांत लगैत छै
प्रेमक उल्का पपनी पर नोर बनल थम्हल
आ एकहि खुटका पर खसि पड़ैत छै
मुदा एहेन जाँच नहि होइत छै सबहक
ओ स्त्री अपन जिनगी
स्वाभिमान सँ कटैत अछि
सब कष्ट रहितो
अभिमान सँ रटैत अछि
ब'र एहेन जे जननी जन्मभूमिक रक्षा लेल
भेल अछि समर्पित
आ प्रेमहि बनैत अछि सम्बल एहि संसार मे
जहिया औथिन्ह सीमा पर सँ
अपन दायित्वक निर्वाह कय
तहिया आँचर त'र मे नुका लेत अपन सर्वस्वकेँ
आ फोलि देत खोंइछक गिरह
करत फेर ओहि सिनेहक दूबि-धान सँ
अपन प्रेमक चुमाओन