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चुमि चुमि चुमाबह दादी सोहागिन, सिव सकर हरि / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

विवाह के समय प्रायः सभी विधियों की समाप्ति के बाद ‘चुमाने’ की विधि संपन्न की जाती है। रिश्ते में बड़ी औरतेॅ चुमावन की विधि में भाग लेती हैं। इस गीत में दुलहिन के लिए सकुशल रहने और उसके सौभाग्य बढ़ने की कामना की गई है।

चुमि चुमि<ref>चूम-चूमकर; अंजलि से चावल, दूब, हल्दी आदि लेकर पैरों, घुटनों, कंधों और सिर का स्पर्श कराके बिखेर देने की विधि को ‘चुमाना’ कहते हैं</ref> चुमाबह<ref>चुमाती है</ref> दादी सोहागिन, सिव संकर हरि।
जते<ref>जितना</ref> चुमैइहऽ<ref>चुमाना</ref> तते<ref>उतना</ref> दीहऽ असीस<ref>आशीर्वाद</ref>, सिव शंकर हरि॥1॥
दूध नहैहऽ<ref>नहाना</ref> पूत फूल फूलैहऽ<ref>खिलना</ref>, सिव संकर हरि।
पैहऽ<ref>पाना</ref> अजोधेआ जी के राज, सिव संकर हरि॥2॥
चुमि चुमि चुमाबह अम्माँ सोहागिन, सिव संकर हरि।
जते चुमैहऽ तते दीहऽ असीस, सिव संकर हरि॥3॥
दूध नहैहऽ पूत फूल फूलैहऽ, सिव संकर हरि।
पैहऽ अजोधेआ जी के राज, सिव संकर हरि॥4॥
पूरौ<ref>पूर्ण हो</ref> तोरऽ<ref>तुम्हारा</ref> मन केरा<ref>का</ref> आस<ref>आशा</ref>, सिव संकर हरि।
दुलहिन के बढ़े अहिबात<ref>सौभाग्य</ref>, सिव संकर हरि॥5॥

शब्दार्थ
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