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चुल्लू भर / सुदर्शन प्रियदर्शिनी
Kavita Kosh से
चुल्लू भर
पानी में ही
हमारा दर्पण है ...
नकल में
खो रहे हैं अक्ल
भाग में
छोड़ रहे हैं
संस्कृति ...
सेंध लगवाने
को रखी
हैं खिड़कियाँ
खुली ...
खुली -सम्पदा
को लूट रहें
विदेशी
यहाँ- वहाँ
हम कबूतर की
बंद आँख से
देख रहें
हैं - बिल्ली ...