ब्याळी रात द्रोणाचार्ये जिद्यूम्
एक अँगूठू कटेगि
म्यरि अंगल्यूम्
पर वेन क्य कनै म्यरु चुसणा
नौ अँगुळी सलामत छन
म्यरि घ्यूम्
मास्टर ह्वलू अपड़ि जगा
मी जब चवूं
वे नच्ये द्यूं
पिन्सना लाला पड़ जाला
सात पुस्त तैं
याद रखलू
आज एकलव्य झुकगि
पर भोळ पाइ-पाइ कु
हिसाब मंगलू
अर्जुनै धनुर्धरि
रै जालि एक किनारा
वेकु गांडिब बि सरमालू
तब न माछै आँखि दिखेलि
न त्येलै कड़ै
सरे आम थोबड़ा पर मोसू लगलू
आस आराम कै नि चऐन्दू
भीश्म तैं मी
पटै ल्योलू
कर्ण जालु कख
घूस रिस्पतौ जमानू च
वे तैं बि त रजवाड़ चऐन्दू
द्रोणाचार्य! सोच ली
पिछली दौं तू ध्वखा मा मरे छै
इबार दौं
सरेआम मरेल्यू .