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चुहिया और संपादक / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
चुहिया रानी रोज डाक से,
कविताएं भिजवाती।
संपादक हाथी साहब को,
कभी नहीं मिल पातीं।
इक दिन चुहिया सुबह सुबह ही,
हाथी पर चिल्लाई।
बाल पत्रिका में मैं अब तक,
कभी नहीं छप पाई।
तब हाथी ने मोबाइल पर,
चुहिया को समझाया।
क्यों ना अब तक तुमने अपना,
मिस ई-मेल बनाया?
अगर मेल पर रचनाएं कुछ,
मुझको भिजवा पातीं।
तो मिस चुहिया निश्चित ही तुम,
कई बार छप जातीं।