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चूँकि घर की बात थी अक्सर नहीं बोले / अशोक रावत

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चूँकि घर की बात थी ,अक्सर नहीं बोले,
बोल तो सकते थे हम भी पर नहीं बोले.

इस तरह गुस्सा उतारा हमने दुनिया पर,
आज अपने आप से दिन भर नहीं बोले.

लोग बोले तो हमेशा हर सितम के बाद,
एक ही आवाज़ में मिल कर नहीं बोले.

मेरे हक़ में बोलने का भी समय आया,
दोस्त बोले त्तो मगर खुलकर नहीं बोले.

लफ्ज़ बेईमान बिलकुल भी नहीं थे पर,
लफ्ज़ों के ईमान में अक्षर नहीं बोले.

आईनों के हक़ में पत्थर बोलते भी क्यूँ,
ठीक वैसा ही हुआ पत्थर नहीं बोले.

मुंसिफ़ों को दोष भी क्या दूँ, गवाही में,
जब तबाही से जुड़े मंज़र नहीं बोले.