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चूँ-चुनाँचे अगर-मगर / नईम
Kavita Kosh से
चूँ-चुनाँचे।। अगर-मगर।। या।। कहने का मेरा मतलब ये,
दौड़ाते ही रहे अनिश्चित भाषा के घोड़े अब तक ये।
पूरा हुआ न मतलब, खुद भी रहे अधूरे,
जादूगर होने निकले, हो गए जमूरे;
शब्दों की इस जगर-मगर में वाणी से बिल्कुल बेढब ये।
साध्य, साधनों की ये कैसी खींचातानी,
भाषा में असमर्थ नहीं थी मेरी नानी;
अर्जित करने को निकले, पर-कोई बताए किस दिन, कब ये?
शायद किसी बात की धरती ठोस नहीं है,
वक्ता और प्रवक्ताओं को होश नहीं है।
जु़बाँ लड़खड़ा जाती इनकी अपनी पर आते जब-जब ये,
चूँ-चुनाँचे अगर-मगर।। या।। कहने का मेरा मतलब ये,
दौड़ाते ही रहे अनिश्चित भाषा के घोड़े अब तक ये।