चूल्हा उदास है..!! / लालित्य ललित
कुछ लोग
मरते हैं अपनी मौत
कुछ असमय कुचले जाते हैं
कुछ डूब जाते हैं
कुछ डुबो दिए जाते हैं
कुछ लोग षड्यंत्र करते हैं
व्यूह रचते हैं ।
उनका भी
कुछ होता होगा
हर एक का बाप होता है
लेकिन ऐसे भी लोग होते हैं
जो बिना कफन के चले जाते हैं
मछलियों का चारा बनते हैं
नावें पलट जाती हैं
बसें खाई में गिर जाती हैं
जहाज़ के जहाज़ खो जाते हैं
- रह जाता है इन के पीछे
दुखी परिवार
संबंधों पर आधारित
चल-चित्र से लोगों की
दुनिया का यथार्थ
काफ़ी कम दिनों के लिए होता है
वार्षिक आयोजनों की याद
केवल बड़े लोगों तक ही
सीमित रहती है और
छोटे, ग़रीब, दैनिक भोगी
लोगों को
वक़्त भी नहीं मिलता सोचने को
उन्हें केवल यह याद रहता है
अगर बारिश हो गई तो
परछत्ती टूट सकती है
काम पर जायेंगे
दिहाड़ी तब पायेंगे
किसी कारण नहीं जा पाने की -
स्थिति में
चूल्हा उदास हो जाएगा
घर की खुशी ग़ायब हो -
जाएगी
बच्चों का चेहरा देखते ही
रामू निकल पड़ता है
अपने हाथ में तसला ले कर
दिहाड़ी मज़दूर है
उसके क़दम तेज़-तेज़ पड़ रहे हैं
देर हो जाएगी तो सेठ किसी और को
काम दे देगा
उसके क़दम और तेज़ हो गए !